गरीब अब मर भी नही सकता हुजूर कानपुर में.....
- तो क्या अब गरीब आदमी कानपुर में मर भी नही सकता।
कानपुर। सवाल बिल्कुल लाजिमी है क्योंकि गरीब जिंदा रहते जी तो नही पाता अब मरने के बाद भी उसकी आत्मा पर बोझ बढ़ जाएगा यानी अब कानपुर में गरीब मरने से पहले भी दस बार सोंचेगा।खासकर शहरी इलाके का गरीब क्योंकि उसको कानपुर में मरना बहुत महंगा पड़ने लगा है।
◆शमशान घाटों पर मनमानी लूट है साहब।जिसे देखने वाला कोई नही।◆पैसे वालो के लिए इतनी दिक्कत नही लेकिन गरीब के लिए मरना भी उसके परिवार पर बोझ बन गया है।
◆घाटो पर संचालको की मनमानी लूट जारी है लेकिन किसी जिम्मेदार को दिखाई नही दे रहा।
◆कानपुर के सिद्धनाथ घाट स्थित शमशान की हालत सबसे विकट है।◆यहाँ मनमाने तरीके से 21सौ से लेकर 31 सौ तक तो केवल शमशान घाट पर अंतेष्टि का चार्ज है।
◆लकड़ी का कोई निर्धारित रेट फिक्स नही ये ये शेयर बाजार और जेब के साइज को देख कर घटाया और बढ़ाया जाता है।
◆300 से लेकर 450 रुपए प्रति मन की लकड़ी है यहाँ।
◆फिर पंडा गौदान और अन्य नौटंकी के नाम पर जो ढग ले गमगीन लोगो को जिन्होंने अपने किसी को खोया है।
◆जलाने के कार्य मे लगे डोम आदि का अपना अलग खर्च है ।
◆प्रवाह करने में लगे नाव चालको का भी कोई निर्धारित शुल्क नही है जिसने जितना काट लिया वो उसका।
यानी अगर 9 मन लकड़ी और अंत्येष्टि करने का कुल खर्च हो गया लगभग 6 हजार के आसपास ।अब अगर कोई गरीब परिवार अपने किसी परिजन की अंत्येष्टि के लिए सिद्धनाथ घाट के शमसान पर पहुंच जाए तो उसकी जेब मे इतना हो तब वो यहाँ दाह संस्कार कर सकता है।मतलब गरीब अब मर भी नही सकता हुजूर कानपुर में......